Friday, February 21, 2014

तोतों की सभा


एक दिन एक पेड़ पर तोतों की सभा भरी। सभा की चर्चा का विषय था कि हम तोतों को यह शब्द रटने की और फिर उसे बार-बार दोहराने की आदत कहां से पड़ गई? क्योंकि हम शब्द तो दोहरा देते हैं पर उसका अर्थ तो समझते ही नहीं? उस शब्द के साथ हमारा कोई भाव तो जुड़ा नहीं होता है? फिर अन्य कोई जानवर नहीं सिर्फ हम ही यह मूर्खता क्यों करते हैं?

          सवाल अनेक थे और जवाब खोजना आसान नहीं था। लेकिन जब इरादे दृढ़ हों तो जवाब भी मिल ही जाते हैं। दिनभर की मगजपच्ची के बाद उन्हें भी उनके सारे सवालों का एक सीधा-सा जवाब मिल गया। एक समझदार व बुजुर्ग तोते ने सबको बताया कि मैंने बहुत पहले कहीं पढ़ा था कि यह और कुछ नहीं हमारे पिछले जन्म की आदत के कारण है। पिछले जन्म में हम सब पंडित, मौलवी या पादरी थे, और हमारा ही अगला जन्म तोते के रूप में हुआ है। और जैसे उस समय हमने शास्त्रों का बिना अर्थ समझे जीवनभर रट्टे लगाए हैं, वैसे ही आज भी हम तोते बनकर यही करने को मजबूर हैं। जैसे उस समय हम अपनी पोशाक और अपना गेट-अप इन्सानों से अलग रखा करते थे, बस उसी का बदला लेते हुए इस जन्म में प्रकृति ने हमें हरे रंग का शरीर तथा लाल कलर की चोंच देकर अपने ग्रुप-पक्षियों से अलग कर दिया है।

          ...यानी आज हम बिना समझे रट्टे लगाने का ही भुगत रहे हैं। इन्सान से सीधे तोतों के स्तर पर गिरा दिए गए हैं। होगा, कर्मों के फल से कौन बच सका है?

    - दीप त्रिवेदी 



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