Monday, September 16, 2013

एक आजाद देश में लाश की कीमत वोट से भी कम क्यों? एक गंभीर विषय जिसपर चिंतन जरूरी।

अभी मुजफ्फरनगर में जो कुछ हिंसा हुई, वह बड़ी ही दुःखद है। और उससे ज्यादा दुःखद उसके पीछे के कारण हैं। क्योंकि हिंसा होना एक बात है और करवाना दूसरी बात। और निश्चित ही इसका प्रारंभ तो तभी हो गया था जब बीजेपी व सपा ने मिलकर 84 कोसी यात्रा की नूरा-कुश्ती का प्लानिंग किया था। यही नहीं, इस दंगे में सपा और बीजेपी का पूरा-पूरा हाथ भी है ही। सबूत के तौर पर दोनों उसी नूरा-कुश्ती के तहत इस दंगे का एक-दूसरे पर इल्जाम अब भी लगा ही रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस व बसपा दोषमुक्त हैं। नहीं, उन्हें भी दंगे में मारे जाने वालों का कोई अफसोस नहीं है, परंतु हां, अपने वोट बैंक खिसकने के डर से दोनों में खजवाहट जरूर है। ...यानी यदि फायदा होता हो तो उन्हें भी दंगों से कोई ऐतराज नहीं।

और फिर भारत की राजनीति में ये सब बातें नई भी नहीं है। मुजफ्फरनगर में 38 मरे हैं तो 84 के दंगों में और गुजरात में कितने मरे; यह सबके सामने है। ...सवाल इसमें भी कई हैं। सबसे प्रमुख तो यह कि रोज-रोज नेता लोग ऐसा करते क्यों हैं? इसका सीधा जवाब यह कि इससे उन्हें चुनाव जीतने में सफलता मिलती है। और सबूत के तौर पर 84 के दंगों के बाद के और गुजरात के दंगों के बाद के चुनावी परिणाम हमारे सामने हैं। लेकिन शायद यह बात पुरानी हो गई है। अब लाशों के ढेर बिछाकर राजनीति करनेवालों को इतनी सफलता तो नहीं ही मिलने वाली। परंतु हमारी गलती हमें भी स्वीकारनी ही होगी। हमें बहकावे में आने से बचना होगा। आपसी वैमनस्य बढ़ाने वाले और भाइयों से भाइयों को लड़वाने वालों से सावधान रहना होगा। ऐसी कोशिशें करने वालों को चुनाव में सबक सिखाना होगा। ...तभी जाकर यह सिलसिला थम सकता है।


और फिर सबसे आश्चर्य में डालने वाला सवाल तो यह कि देश-सेवा के नाम पर राजनीति में आनेवाले लोग क्यों आतंकवादी जैसी हरकतें कर सत्ता में आना चाहते हैं? यह यही स्पष्ट करता है कि ये लोग सेवा करने के लिए नहीं बल्कि मेवा खाने हेतु राजनीति में आ रहे हैं। चिंता का विषय यह भी है कि सत्ता टिकाने और सत्ता बढ़ाने हेतु अंग्रेज भी हमारे कत्लेआम ही करते थे। और आज ये नेता लोग भी उनसे अलग कुछ नहीं कर रहे हैं। तो हम आजाद हुए कहां हैं? खून अपने बहाए या पराए, खून तो खून ही होता है। अतः कुछ भी कर हमें ऐसे नेताओं व ऐसी राजनीति से छुटकारा पाने के उपाय खोजने होंगे। क्योंकि हम ऐसे कुचक्र में फंसे हैं कि एक जाता है और दूसरा आता है, और दूसरा पहले का भी बाप सिद्ध होता है। लेकिन इसका उपाय तो खोजना ही रहा। अतः इस पर मैं आपके अच्छे सुझाव आमंत्रित करता हूँ ताकि पूरा देश इस पर चिंतन कर सके।





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