आज से ठीक एक सप्ताह पहले 14 सितंबर 2013 को इसी ब्लाग के माध्यम से
अवयस्कता की कसौटी पर मेरे साथ सबसे ज्यादा बर्बरता से पेश आनेवाले अपराधी
को कठोर दंड से बचाने का प्रयास न करने का अनुरोध किया था.
मैंने सख्ती के साथ यह सवाल उठाया था कि ‘‘ यह आपका कौन-सा कानून है जिसने मेरे साथ सबसे ज्यादा बर्बर व्यवहार करनेवाले को नाबालिग करार देकर, सिर्फ तीन वर्ष की सजा दी। मैं पूछती हूँ कि उसको फांसी क्यों नहीं?’’ और मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मेरी बात सुनी जा रही है.
आज की खबर के अनुसार सरकार कानून में इस आशय का संशोधन करने का विचार कर रही है कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मामले में 16 साल से ऊपर के नाबालिग को वयस्क समझा जाय. मुझे आशा है कि यह नाबालिग अपराधी भी अपने अन्य साथियोँ की तरह उचित सजा जरूर पाएगा. मैं पुनः निवेदन करती हूँ कि इस नाबालिग के साथ भी उतनी ही कठोरता से पेश आया जाए।
क्या उम्र व्यक्ति के कर्म के दायरे का मापदंड तय कर सकती है? अकबर चौदह वर्ष की उम्र में राजा बन गए थे। और वे सबसे बेहतर मुगल शासक सिद्ध हुए थे। मोजार्ट ने पांच वर्ष की उम्र में अपनी पहली धुन बना ली थी। और एडीसन ने आठ वर्ष की उम्र में अपनी प्रथम लेबोरेटरी डाल दी थी। जब नाबालिग की प्रतिभा का आप लोहा मान सकते हैं, तो उसकी क्रूरता का हिसाब उससे क्यों नहीं लिया जा सकता है?
मनुष्य के कर्म उसकी उम्र से नहीं उसकी सायकोलोजी से तय होते हैं। अतः सावधान हो जाओ! बात सिर्फ मेरी वेदना की ही नहीं है, डर नाबालिगों के भटकने का भी है। ऐसा न हो कि अदालत के इस निर्णय से कल देश के नाबालिगों का उत्साह बढ़ जाए। वे यह न सोचने लगें कि कुछ भी कर लो; पकड़े गए तो भी सजा कहां मिलने वाली है? सो मेरी वेदना के सही इन्साफ हेतु भी, और देश के भविष्य हेतु भी; मेहरबानी कर उस क्रूर नाबालिग का भी हिसाब करो...।
Daily Blog @ www.deeptrivedi.com
मैंने सख्ती के साथ यह सवाल उठाया था कि ‘‘ यह आपका कौन-सा कानून है जिसने मेरे साथ सबसे ज्यादा बर्बर व्यवहार करनेवाले को नाबालिग करार देकर, सिर्फ तीन वर्ष की सजा दी। मैं पूछती हूँ कि उसको फांसी क्यों नहीं?’’ और मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मेरी बात सुनी जा रही है.
आज की खबर के अनुसार सरकार कानून में इस आशय का संशोधन करने का विचार कर रही है कि बलात्कार और हत्या जैसे जघन्य अपराधों के मामले में 16 साल से ऊपर के नाबालिग को वयस्क समझा जाय. मुझे आशा है कि यह नाबालिग अपराधी भी अपने अन्य साथियोँ की तरह उचित सजा जरूर पाएगा. मैं पुनः निवेदन करती हूँ कि इस नाबालिग के साथ भी उतनी ही कठोरता से पेश आया जाए।
क्या उम्र व्यक्ति के कर्म के दायरे का मापदंड तय कर सकती है? अकबर चौदह वर्ष की उम्र में राजा बन गए थे। और वे सबसे बेहतर मुगल शासक सिद्ध हुए थे। मोजार्ट ने पांच वर्ष की उम्र में अपनी पहली धुन बना ली थी। और एडीसन ने आठ वर्ष की उम्र में अपनी प्रथम लेबोरेटरी डाल दी थी। जब नाबालिग की प्रतिभा का आप लोहा मान सकते हैं, तो उसकी क्रूरता का हिसाब उससे क्यों नहीं लिया जा सकता है?
मनुष्य के कर्म उसकी उम्र से नहीं उसकी सायकोलोजी से तय होते हैं। अतः सावधान हो जाओ! बात सिर्फ मेरी वेदना की ही नहीं है, डर नाबालिगों के भटकने का भी है। ऐसा न हो कि अदालत के इस निर्णय से कल देश के नाबालिगों का उत्साह बढ़ जाए। वे यह न सोचने लगें कि कुछ भी कर लो; पकड़े गए तो भी सजा कहां मिलने वाली है? सो मेरी वेदना के सही इन्साफ हेतु भी, और देश के भविष्य हेतु भी; मेहरबानी कर उस क्रूर नाबालिग का भी हिसाब करो...।
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