Monday, September 23, 2013

क्या शिवराजसिंह चौहान अगले प्रधानमंत्री होंगे?

बीजेपी ने मोदीजी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अच्छी बात है, क्योंकि बीजेपी कार्यकताओं के जोश के लिए यह आवश्यक भी था। साथ ही देश में कई अन्य लोग भी मोदिजी को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते ही हैं। इसके अलावा मोदिजी का कद बढ़ाने हेतु भी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के पूर्व यह घोषणा एक श्रेष्ठ राजनैतिक विकल्प था ही। क्योंकि इन चुनावों में बीजेपी के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है ही, सो इन चुनावी नतिजों से बीजेपी को मोदी-लहर से जोड़कर माहौल बनाने का एक अच्छा मौका मिल जाएगा। अब बात और गणित तो सब सही है, परंतु इस पूरी बात का एक सायकोलाजिकल पहलू भी है और जो किसी और बात की ओर इशारा कर रहा है। और सच कहूं तो बीजेपी व देश की अन्य पार्टियों में चल रही वर्तमान सायकोलोजिकल सिक्वन्स पर गौर किया जाए तो मुझे तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के ही प्रधानमंत्री बनने की संभावना ज्यादा नजर आ रही है।

देश के राजनैतिक पटल पर खेले जा रहे सायकोलोजिकल युद्ध से तो यही संभावना सबसे ज्यादा प्रबल नजर आ रही है। बात आगे बढ़ाऊं उससे पूर्व यह अच्छे से समझ लें कि मनुष्य की सायकोलोजी ही उसके भविष्य का स्टेप तय करती है। और कहने की जरूरत नहीं कि लिया हुआ स्टेप ही भविष्य तय करता है। इस कारण संभावनाओं की फोरकास्ट जितनी पक्की सायकोलोजिकल एनालिसिस से की जा सकती है, अन्य किसी बात से नहीं। तो हम अभी यह जो संभावना दिख रही है, उसके तमाम पहलुओं की समीक्षा करें।

A. जाहिरी तौर पर कांग्रेस अपना पुराना परफॉरमन्स नहीं दोहरा रही है।
B. बीजेपी की सीटें बढ़कर आने की प्रबल संभावना बनी ही हुई है।
C. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अन-ऑफिसियली PM का उम्मीदवार घोषित कर ही दिया है।
D. नरेंद्र मोदीजी की सायकोलोजी तय है कि वे किसी की ज्यादा दिन सुन नहीं सकते। सत्ता के सम्पूर्ण सूत्र उन्हें हमेशा पूरे-के-पूरे अपने हाथ में चाहिए होते हैं। गुजरात में विहिप व RSS का हाल उनकी इस जिद्द को उजागर करने हेतु पर्याप्त है।
E. साथ ही जिस तेजी से उन्होंने चन्द माह में ही बीजेपी की चुनाव समिति व बीजेपी पर नियंत्रण पाया है, उन्होंने अपनी सम्पूर्ण नियंत्रण पा लेने की क्षमता एकबार फिर से सिद्ध कर ही दी है।
F. वैसे ही आडवाणीजी, शत्रुघ्न सिन्हा, यशवंत सिन्हा, सुशील मोदी, शिवराजसिंह चौहान जैसे जिन-जिन नेताओं ने मोदीजी के खिलाफ बयान दिए उन्हें किस तरह अपमान सहना पड़ा यह सभी जानते हैं। ...यानी राष्ट्रीय पटल पर आने के तीन माह में उन्होंने पूरी पार्टी को नियंत्रित कर लिया है। वैसे उनकी इस अद्भुत नेतृत्व-क्षमता हेतु उन्हें सलाम करना ही होगा।
G. परंतु यह तो हुई मोदीजी और उनकी क्षमता की बात। लेकिन सवाल यह कि उनकी इस क्षमता और जिद्द से RSS से लेकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व तक सब वाकिफ हैं ही। यह भी तय है कि न तो RSS और न ही शीर्ष नेतागण मोदीजी से इस कदर दबना कभी पसंद करेंगे।

H. तो फिर वे सब मिलकर मोदीजी को आगे क्यों लाए? निश्चित ही उनकी लोकप्रियता को भुनाने हेतु। ताकि मोदीजी के सहारे बीजेपी की बीस-पच्चीस सीटें बढ़ सके। और यह संभव है ही।

...यहां तक तो सब ठीक, परंतु आगे क्या? आगे दो बातें स्पष्ट हैं। बीजेपी को 150 के करीब सीटें आ सकती है। ऐसे में 17 एक सीटें सहयोगियों की मान भी ली जाए तो भी 167 ही होती है। और प्रधानमंत्री बनने हेतु 272 चाहिए यानी 105 के करीब कम पड़ती है। और खेल यहीं से जमता दिखाई दे रहा है। उस समय एक तो मोदीजी के नाम पर अन्य पार्टियों से सहयोग मिलता नजर नहीं आ रहा है, और दूसरा RSS या बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व (अरुण जेटलीजी को छोड़कर) मोदी को दिल से स्वीकारे, ऐसा नजर नहीं आता है। ...यानी बॉल वापस आडवाणीजी के कोर्ट में जाती नजर आ रही है। और आडवाणीजी इस उम्र में शायद खींचतान कर प्रधानमंत्री बनना पसंद न करें। अतः वे शिवराजसिंह चौहान को ही आगे करते नजर आ रहे हैं। यहां यह भी तय है कि अन्य पार्टियों से सहयोग सिर्फ आडवाणीजी ही ला सकते हैं। और यह भी तय है कि वे मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने की शर्त पर समर्थन नहीं ही जुटाएंगे।

तो फिर सामन्य मान्यता के अनुसार यदि बीजेपी की गवर्नमेंट बनती है तो अरुण जेटली या सुषमा स्वराज प्रधानंमत्री होने चाहिए। परंतु उनकी भी संभावना नहीं पर ही है। एक तो वे दोनों एकदूसरे को न बनने देने में सक्षम नजर आते हैं। दूसरा उनको प्रशासनिक अनुभव न होना भी उनके खिलाफ जा सकता है।

...अब ऐसे में शिवराजसिंह चौहान एकमात्र विकल्प बचे रह जाते हैं। और हाल ही में उन्होंने एक सार्वजनिक ईद-मिलन समारोह में टोपी पहनकर अपने प्रधानमंत्री बनने की दावेदारी एक तरीके से पेश कर भी दी है। संभावना यह भी नजर आती ही है कि ऐसा उन्होंने आडवाणीजी के इशारों पर ही किया हो। कुल-मिलाकर इन सारी कड़ियों को मिलाया जाए तो चुनावों के बाद मोदीजी को ना तो बीजेपी, न तो सहयोगी...और ना ही आर.एस.एस. से प्रधानमंत्री पद हेतु समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह भी उठता है कि क्या बीजेपी और आर.एस.एस 25-30 सीटें ज्यादा लाने हेतु मोदीजी की लोकप्रियता का कहीं इस्तेमाल कर रही हैं?

...वहीं इन तमाम संभावनाओं के बीच मोदीजी की बात की जाए तो वे शायद एक ही संभावना पर आशा रखे हुए नजर आते हैं कि बीजेपी को कैसे भी कर 175 के करीब सीटें मिल जाएं तो शायद उनकी नैया पार लग जाए। तब 15 सहयोगी और 25 के करीब जयललिता व चन्द्रबाबू के सांसदों का सहयोग उन्हें मिल सकता है। ऐसे में उनका टोटल 215 तक पहुंच जाता है। फिर बचे 55 के करीब, तो शायद मोदीजी सोच सकते हैं कि उसकी जुगाड़ हो जाएगी। परंतु सच कहूं तो मुझे मोदीजी के नाम पर 55 का समर्थन जुटाना उस वक्त भी अन्य किसी के नाम पर 120 का समर्थन जुटाने जैसा भारी ही लग रहा है। खासकर वंजारा के बयान के बाद तो मोदीजी के नाम पर मुझे तो जयललीता या चंद्राबाबू नायडु भी आसानी से राजी होते नजर नहीं आ रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बीजेपी की 175 सीटें आती दिख भी नहीं रही है। और साथ ही वंजारा के बयान के बाद जयललीता व चंद्रबाबू भी समर्थन हेतु बड़ी मशक्कत करवाए, ऐसा लग ही रहा है।

सो, तमाम सायकोलोजिकल पहलू का तारण यही है कि यदि बीजेपी की गवर्नमेंट बननी है तो शिवराज सिंह चौहान इन चुनावों बाद प्रधानमंत्री पद के डार्क हॉर्स हो सकते हैं।

यहां यह स्पष्ट कर दूं कि इन तमाम सायकोलोजिकल एनालिसिस के पीछे का मेरा कोई मकसद किसी को ऊंचा-नीचा दिखाने का या किसी का पक्ष लेने का नहीं है। मैं सिर्फ लोगों में सायकोलोजिकल तरीके से सोचने की क्षमता निखारना चाहता हूँ। क्योंकि मनुष्य की बढ़ी सायकोलोजिकल एनालिसिस की क्षमता उसे कहां-से-कहां ले जा सकती है। ...और मैं हर एक का जीवन ज्यादा-से-ज्यादा आबाद देखना चाहता हूँ।



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