Wednesday, November 6, 2013

धन की वर्षा चाहते हो तो उपाय पढ़ो



 देवी     - चलो, फटाफट खजाना रथ में भरो
         जानते नहीं आज मेरा जन्मदिन है
         मुझे पृथ्वी पर जाकर योग्य लोगों पर धनवर्षा करनी है
 सेवक     -    देवी, इतना ढेर-सा खजाना ले जाने का कोई फायदा नहीं
         आपको कोई बड़ी तादाद में योग्य व्यक्ति मिलने वाले नहीं
 देवी    -    क्या बात करते हो?
         आज-कल तो घर-घर में मेरी पूजा होती है
         बेचारा मनुष्य सालभर मेहनत भी मेरे आगमन की उम्मीद में ही करता है
         मैं अपने भक्तों को निराश नहीं कर सकती
 सेवक     -    कौन कह रहा है कि आप अपने भक्तों को निराश करें
         परंतु आप अपना नियम भी तो नहीं तोड़ सकतीं
 देवी    -    बात मत बनाओ और चलो फटाफट धरती पर
         (...उधर धरती पर संध्या से देर रात तक घूमने के बाद भी देवी बमुश्किल दो-चार लोगों पर ही धन-वर्षा कर पाईं। देवी इससे काफी उदास हो जाती हैं)
     -     उसी उदासी भरे स्वर में देवी ने सेवक से पूछा- यह कैसे हो गया?
         सबको मालूम है कि मैं उल्लू पर ही बैठती हूँ
         ...सरल व सीधों पर ही बरसती हूँ
         फिर आज धनतेरस के दिन भी ऐसे लोग ज्यादा दिखे क्यों नहीं?
 इस पर सेवक बोला-    मैंने पहले ही कहा था न कि
         अब जमाना बदल गया है
         धरती पर आपके भक्त ज्यादा बचे नहीं हैं
         आपकी कामना तो बहुत करते हैं
         परंतु सीधी राह पे चलकर आपके लाड़ले बनने से घबराते हैं
         अब तो वे चोरी, दगाबाजी, बदमाशी के सहारे ही 
         आपको पाने की कोशिश करते हैं
         आजकल आपकी बात ‘‘कि आप उल्लू पर बैठती हैं’’
         पे कोेई भरोसा नहीं करता है
         उसके बजाए सबने आपकी पूजा करने का शॉर्ट-कट ढूंढ़ लिया है
         बाकी तो दिन-रात स्मार्टनेस ही दिखाते रहते हैं
 यह सुन देवी क्रोधित हो बोली-
         बस...तो फिर मुझे पाने हेतु करने दो स्ट्रगल उन्हें
         मुझे किसी को कुछ नहीं देना
         मुझे तो उल्लू पर बैठना ही पसंद है
         और उल्लू पर ही बैठूंगी
         बस जब और जितने बिना स्मार्टनेस दिखाए
         और बगैर बदमाशी किए सीधी राह पर चलते दिखेंगे
         मैं उतनों पर ही दिल खोलकर धन वर्षा करूंगी
         लेकिन बदमाशी या स्मार्टनेस से मुझे
         पाने की कोशिश करने वालों को तो मैं जीवनभर तड़पाऊंगी।

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