सचिन, जिन्होंने अपना पहला अंतराष्ट्रीय मैच सन 1989 में खेला था, आज 24
वर्ष बाद अंतराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। सचिन ने क्रिकेट में
क्या कीर्तिमान बनाए या वे कितने उच्चस्तर के खिलाड़ी हैं, यह सब जानते हैं।
उस बाबत कुछ कहना सूरज को रोशनी दिखाने जैसा होगा।
सो, मैं सीधे उस बात पर आता हूँ जो मैं आज के दिन आपसे कहना चाहता हूँ।
सचिन जैसा महान बनना शायद हरकोई चाहता है, परंतु उस हेतु क्या करना; यह कोई
नहीं जानता है। और वह जानने हेतु आपको थोड़ा सचिन के व्यक्तित्व में झांकना
चाहिए। क्योंकि मेरी दृष्टि में सचिन उन तमाम गुणों की खान हैं जिसे सारे
धर्म एक संत के लक्षण बताते हैं।
जैसे उनका एकिन्द्रीय होना। उनका जीवन सिर्फ क्रिकेट…क्रिकेट और क्रिकेट
था। सीधी बात है जो व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में एकिन्द्रीय होगा वह उस
क्षेत्र के टॉप पर पहुंच ही जाएगा।
दूसरी बात है उनकी ऐसी सरलता जहां कोई सफलता उन्हें कभी रत्तीभर अहंकार
नहीं पकड़ा पाई। और जो अहंकार पकड़ेगा ही नहीं, उसकी गाड़ी रुकेगी कैसे?
कुदरत उसके रास्ते में आएगी ही क्यों? सो लगातार 24 वर्ष एक-सा क्रिकेट वे
खेलते रहे।
तीसरी बात है उनकी क्रिकेट के प्रति ऐसी कटिबद्धता, जिसके चलते उन्होंने
चौबीस वर्ष अपनी फिटनेस टिकाए रखी। यह कोई मजाक बात नहीं है। आप सिर्फ एक
दिन क्रिकेट खेलकर देख लेना, सारे अस्थिपंजर ढीले हो जाएंगे। लेकिन सचिन के
लिए क्रिकेट जीवन था, और जीवन बचाने हेतु जो करना चाहिए वह करना ही पड़ता
है। उन्होंने किया, पर हम नहीं कर पाते हैं।
चौथी बात है उनको लोगों के दुःख-दर्द व उनके जीवन की भी परवाह रहती ही
है। एक छोटी-सी बात बताऊं, जब मुंबई में पानी की तकलीफ आई तो सचिन ने सिर्फ
एक बालटी से नहाना शुरू कर दिया। यह महान से महानतम गुण है। यह दिखाता है
कि शिखर पर बैठे होने के बावजूद जमीन पर रहने वालों के दर्द उन्हें तड़पाते
ही हैं।
खैर, उनके गुणों पर तो एक पूरी किताब लिखी जा सकती है। अभी तो मैं यह
साफ तौर पर कह सकता हूँ कि सचिन क्रिकेट से भले ही रिटायर्ड हो गए हों,
परंतु वे अपने महान गुणों के कारण जिंदगी से कभी रिटायर्ड नहीं होंगे। वे
राज्यसभा सदस्य तो बन ही चुके हैं। आगे और अच्छे कार्यों में रस लेकर लोगों
का उद्धार वे करते ही रहेंगे। क्योंकि सचिन जैसे व्यक्ति कभी रिटायर्ड
नहीं होते। और हम यही चाहते हैं कि वे रिटायर्ड न हों बल्कि अलग-अलग
क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा के बल पर लोगों का दिल जीतते रहें।
अंत में एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि हमारे अधिकांश नेता और धर्मगुरु
यूं तो काफी महान हैं, परंतु शायद वे रिटायर्ड हो जाएं तो देश का ज्यादा
भला होगा। खैर, वे रिटायर्ड होना नहीं चाहते तो सचिन से कुछ सीख लें। हो
सकता है कि उसके बाद वे वास्तव में हमारी सेवा कर पाएं। क्योंकि नेता या
संत का ठप्पा लगाने से आदमी सेवक या धार्मिक नहीं हो जाता, बल्कि वह यह
दोनों मुकाम अपनी वास्तविक भावना से पाता है। … हमारे सचिन सेवक व संत
दोनों हैं। सो वे न रिटायर्ड हुए हैं और ना ही हो सकते हैं।
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