- भाई, तुम अपने को बड़ा सज्जन समझते हो।
- मैं सज्जन हूँ ही।
- यह आपने कैसे तय कर लिया?
- किसी से भी पूछ लो।
- किसी से क्यों पूछूं? दूसरा तो आपको आप जो बाहर प्रकट करते हैं
उससे पहचानता है
...मैं तो आपसे ही क्यूं न पूछूं।
क्या आपको कभी जलन नहीं पकड़ती?
क्या आप अपना काम निकलवाने के लिए सच-झूठ नहीं करते?
क्या आप सिर्फ अपने और अपने परिवार के लिए नहीं जी रहे?
क्या आप धर्म और जाति के नाम पर मनुष्यों से मनुष्यों में भेद नहीं किए बैठे हैं?
क्या आप बड़ों की चापलूसी करने का और छोटों को दबाने का काम नहीं करते?
- हां, यह सब तो है ही।
- तो फिर आप अपने को सज्जन मत समझना
क्योंकि आप जो प्रकट कर रहे हैं, वह आप नहीं हैं
आप वो हैं जो आपके भीतर आ और जा रहा है।
- फिर तो मैं सज्जन नहीं
पर वादा करता हूँ कि आगे से भीतर की शुद्धि पर ध्यान अवश्य दूंगा।
- मैं सज्जन हूँ ही।
- यह आपने कैसे तय कर लिया?
- किसी से भी पूछ लो।
- किसी से क्यों पूछूं? दूसरा तो आपको आप जो बाहर प्रकट करते हैं
उससे पहचानता है
...मैं तो आपसे ही क्यूं न पूछूं।
क्या आपको कभी जलन नहीं पकड़ती?
क्या आप अपना काम निकलवाने के लिए सच-झूठ नहीं करते?
क्या आप सिर्फ अपने और अपने परिवार के लिए नहीं जी रहे?
क्या आप धर्म और जाति के नाम पर मनुष्यों से मनुष्यों में भेद नहीं किए बैठे हैं?
क्या आप बड़ों की चापलूसी करने का और छोटों को दबाने का काम नहीं करते?
- हां, यह सब तो है ही।
- तो फिर आप अपने को सज्जन मत समझना
क्योंकि आप जो प्रकट कर रहे हैं, वह आप नहीं हैं
आप वो हैं जो आपके भीतर आ और जा रहा है।
- फिर तो मैं सज्जन नहीं
पर वादा करता हूँ कि आगे से भीतर की शुद्धि पर ध्यान अवश्य दूंगा।
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