Saturday, November 16, 2013

रोबो का सुसाइड खबर दिलचस्प भी और चिंतन योग्य भी


 आज ऑस्ट्रिया में एक रोबो ने किचन के रूटीन-कार्य से थककर सुसाइड कर लिया। अब यह खबर सही है या गलत, इस पर मैं अभी चर्चा करना नहीं चाहता हूँ। यूं भी आजकल पब्लिसिटी के लिए दिलचस्प खबर फैलाने वालों का एक दौर-सा चल पड़ा है। 

अभी तो महत्वपूर्ण यह कि यह बात सही है कि सेन्सिटिविटी का ठेका सिर्फ मनुष्य,जानवर या पेड़-पौधों ने ही नहीं ले रखा है, बल्कि प्रकृति का कण-कण सेन्सिटिव ही होता है। फर्क सबमें सेन्सिटिविटी की आपसी तीव्रता का ही है। और चूंकि यह प्रकृति क्रमशः चेतना के विकास के आधार पर चलायमान है; सो भले ही आज न सही, परंतु एक दिन तो रोबो भी इतना सेन्सिटिव हो ही जाएगा कि एक-का-एक रूटीन कार्य से वह इन्कार करेगा ही। और निश्चित ही उस दिन हमें फैक्टरी चलाना या हवाईजहाज उड़ाना मुश्किल हो जाएगा। 

खैर, वह जब होगा तब देखा जाएगा। अभी तो यहां प्रमुख सवाल यह कि जब रोबो तक को रूटीन कार्य करना नहीं जंचता, जब पेड़ पर फूल भी रोज नए-नए उगते हैं, तो सेन्सिटिविटी का बादशाह कहा जाने वाला इन्सान कैसे इस कदर रूटीन जीवन जी लेता है? एक-से विचार व एक-से कार्य में कैसे अपना पूरा जीवन बिता देता है? क्या आज के इन्सान की सेन्सिटिविटी पूरी तरह मर चुकी है? बिल्कुल मर चुकी है। इसीलिए तो आजकल जिंदा इन्सान नजर ही नहीं आते हैं? 

लेकिन थोड़ा सोचो, प्रकृति में हर पल नई हवा बहती है, और उस हर पल बहती हवा में पल-पल नया जीना चाहिए। फिर आप क्यों जीवन भर हिंदू, मुस्लिम या क्रिश्चियन बने जीते हैं? क्यों जीवनपर्यंत भारतीय या अमेरिकन बने घूमते हैं? कैसे आप वो ही 20 वर्ष पढ़ाई, फिर शादी व कैरियर, फिर बुढ़ापा और मृत्यु जैसा एक-सा स्टीरियो-टाइप रूटीन जीवन जीए जा रहे हैं?

नहीं, यह पेड़-पौधों तक को जब शोभा नहीं देता तो फिर हम तो मनुष्य है। कैसे हजारों वर्ष पुराने विचार ढोकर जी सकते हैं? नई हवा है तो नए विचार पनपाओ, जीने के नए-नए तरीके खोजो। क्यों अपनी सेन्सिटिविटी व क्रिएटिविटी को मारकर अपना जीना-मरना सब बराबर किए हुए हो? और कुछ नहीं तो इस ऑस्ट्रियन रोबो से ही सीख लो कि यह सब कितना निर्जीव व बोरिंग है। सो मेहरबानीकर मनुष्य हो, हर बहती नई हवा के साथ नया जीओ।


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