Sunday, November 24, 2013

कुत्तों की सभा


एक दिन कुछ दार्शनिक कुत्ते शहर के एक बड़े चौराहे पर एकत्रित हो गए। मकसद साफ था, बात-बात पर भौंकने की आदत के कारण इन्सान द्वारा कई कहावतों के साथ उनका नाम जोड़ दिए जाने से वे परेशान थे। अतः वे अपनी यह भौंकने की आदत से छुटकारा पाने के उपायों पर चर्चा करने हेतु एकत्रित हुए थे। चर्चा काफी लंबी चली परंतु कोई उपाय नहीं निकल पाया। दो-चार दार्शनिक कुत्तों ने कहा भी कि चलो हम तो समझदार हैं, भौंकना छोड़ भी देंगे परंतु यह जो लाखों की तादाद में मूर्ख कुत्ते हैं...उनका क्या? उन्हें कौन समझाएगा? उनकी आदत कौन छुड़ाएगा? मामला वाकई गंभीर था और उपाय एक नहीं सूझ रहा था। सब बड़ी गंभीर मुखमुद्रा बनाए बैठे हुए थे।

आखिर एक समझदार कुत्ते से नहीं रहा गया। वह बड़े व्यंगात्मक अंदाज में सबको संबोधित करते हुए बोला- सबसे पहले तो यह गलतफहमी दूर कर लो कि यहां सब समझदार कुत्ते ही इकट्ठे हुए हैं। समझदारों में से तो कोई यहां आया ही नहीं है। अरे, भौंकना तो हम लोगों की स्वाभाविक भाव-अभिव्यक्ति की प्रक्रिया है। हमें भौंकना भीतर से आता है और हम भौंक लेते हैं। इसमें बुराई क्या? परंतु यह जो भौंकने से छुटकारा पाने हेतु आप लोग जिस दार्शनिक अंदाज में एकत्रित हुए हो, वह हरकत जरूर इन्सानों वाली है। और ध्यान रखना कि कुत्तों में जो भी यह दार्शनिकता ओढ़ेगा, वह अगले जन्म में इन्सान ही बनेगा। क्योंकि यह दार्शनिक अंदाज ही है कि भीतर से भौंकना आ रहा है, तो भी सभ्य बनने की खातिर उसे दबाओ। नहीं, यह कतई मत करना।

...जरा इन्सानों को गौर से देखो। उन्होंने अच्छे-बुरे और पाप-पुण्य की लाखों सूचियां बना ली है। और उस चक्कर में वह स्वाभाविक रूप से जीना ही भूल गया है। भीतर क्रोध होता है और बाहर प्रेम जताता है। भीतर जलन पकड़ी होती है, और बाहर सफलता की बधाई में बुके दे रहा होता है। बस ऐसी ही हजारों भीतर-बाहर की भिन्नता अपनाए जाने के कारण विश्व का सबसे दुःखी और फ्रस्ट्रेटेड प्राणी यह दो पांव वाला जानवर हो गया है। अतः तुम मेहरबानीकर यह दार्शनिक अंदाज मत अपनाओ, वरना अगले जन्म में इन्सान हो जाओगे।
 

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