Saturday, November 16, 2013

कर्तव्य समझो।



- अरे भाई, आप कौन हो और मुझे नींद से क्यों उठा रहे हो? 
- दोस्त! मैं कर्तव्य हूँ 
- कर्तव्य...! तुम क्या बला हो? 
- मैं वह बला हूँ जिसका एहसास हुए बगैर तुम्हारा जीवन सफल ही नहीं हो सकता है। 
- कैसे...? 

- देखो, तुम अपना जीवन क्या समझते हो? 
यही न कि पढ़ लें, अच्छा कमाएं, घर बसाएं और 
जीवन हंसते-खाते गुजार दें। 
यह तो जरूरी है ही, परंतु यही जीवन नहीं है। 

थोड़ा यह सोचो कि तुम जीवनभर कितने लोगों द्वारा ईजाद की गई वानगियां खाते हो 
कितने ज्ञानियों की ज्ञानपूर्ण बातों से जीवन की सही राह पाते हो
कितने कलाकारों के हृदय से निकली कला का 
अपने सुकून और मनोरंजन के लिए उपयोग करते हो और 
वैज्ञानिकों की ईजाद की हुई वस्तुओं के बगैर तो तुम एकपल नहीं जी सकते। 

जब तुम्हारा जीवन पूरा-का-पूरा दूसरों द्वारा ईजाद की हुई वस्तुओं पर निर्भर है
तो क्या तुम्हारा यह कर्तव्य नहीं कि मरने से पूर्व तुम भी कुछ ऐसा नया कर जाओ 
जो आने वाले मनुष्यों के काम आए। 

- बिल्कुल सही! अब जाकर बात समझ में आई 
इस तरीके से तो हमने कभी सोचा ही नहीं था 
अब हम खुद तो कुछ नया और अच्छा करने का प्रयास करेंगे-ही-करेंगे
अपने बच्चों को भी खास उस हिसाब से ही बड़ा करेंगे 
कि वे निश्चित तौर पर कुछ नया और धमाकेदार कर पाएं।






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