Saturday, November 16, 2013

ध्यान पाना चाहते हो तो...।



-     अरे भाई ध्यान, तुम हो कहां?
         तुम्हारे बगैर मेरा एक भी काम ठीक से नहीं हो रहा है।
     -    लो, मैं तो सदैव से तुम्हारे भीतर पूरा-का-पूरा विराजमान हूँ।
     -     तो फिर किसी भी महत्वपूर्ण कार्य में मेरा ध्यान लगता क्यों नहीं?
     -    क्योंकि तुमने हजारों बेकार के कार्यों में मुझे बांट रखा है
         सोचो, कोई तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े कर दे तो क्या होगा?
         बस, वही हाल तुमने मेरा कर रखा है।

     -    तो अब क्या करूं?
         तुम्हें पूरा-का-पूरा कैसे पाऊं?
         मुझे वाकई एक-दो बड़े ही महत्वपूर्ण कार्य हैं
         यदि उसमें तुमने मेरा साथ दिया तो मेरा जीवन ही बन जाएगा।

     -    तो मेरा असहयोग है कहां?
         लेकिन मैं कोई अलग से पाने या किसी चीज में जबरदस्ती लगाने की वस्तु नहीं हूँ
         मैं तो तुम्हें वैसे ही पूरा-का-पूरा उपलब्ध हूँ
         केवल जिन अनावश्यक कार्यों में तुमने मुझे लगा रखा है, उनसे मुझे हटा दो
         बस फिर मैं पूरा-का-पूरा वहीं लग जाऊंगा जहां तुम कहोगे। 

     -    अच्छा, तो यह बात है
         लो, अभी से फोकट की गॉसिपिंग,
         फिजूल की चिंताएं और
         दूसरों के जीवन से अपना ध्यान हटा लेता हूँ।
         ...आखिर मुझे भी मरने से पूर्व कोई बड़ा कार्य करना है।
 



No comments:

Post a Comment