- अरे भाई फ्रस्ट्रेशन!
तुम आजकल
बात-बात पर क्यों बाहर निकल आते हो?
- क्या करूं आप तो अपने कैरियर के चक्कर में
मस्ती
से जीना ही भूल गए हैं
जब कभी
थोड़ी बहुत मस्ती की इच्छा होती भी है तो
लग जाते
हो फोन पर गप्पें मारने
बैठ जाते
हो कम्प्यूटर खोलकर चेटिंग करने
बहुत हुआ
तो दो-चार की बुराई करके मन भर लेते हो।
अब इन
सबसे कहीं मस्ती उत्पन्न होती है?
आपको पता
नहीं चलता
और इधर मैं ही फिर बार-बार फ्रस्ट्रेशन का स्वरूप
लेकर
बाहर निकलती रहती हूँ।
अरे भाई, मैं मस्ती हूँ
बुद्धि लगाने से नहीं, निर्दोषता और बेवकूफी से
पैदा होती हूँ
लेकिन तुम तो मुझे पैदा करने हेतु भी बुद्धि लगाते
हो
...फिर मैं फ्रस्ट्रेशन का स्वरूप धारण कर निकलुंगी
नहीं
तो और क्या करूंगी?
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