Wednesday, January 15, 2014

मार्टिन लूथर किंग, जूनियर


एक प्रख्यात अमेरिकन एक्टीविस्ट और मानवतावादी ने आज ही के दिन सन 1929 में यू.एस.ए. के एक पादरी के घर पहली बार सांस ली थी। पहले उनका नाम माइकल किंग रखा गया था पर बाद में उनके पिता ने उनका नाम बदलकर मार्टिन लूथर किंग रख दिया जो एक जर्मन समाज-सुधारक के नाम पर आधारित था। उनके पिता को इस बात का शायद एहसास भी नहीं था कि उनका बेटा बड़ा होकर अपने हमनाम व्यक्ति से भी ज्यादा प्रसिद्ध व क्रांतिकारी शख्सियत बनेगा।

     मार्टिन लूथर किंग जूनियर, जिन्हें प्यार से किंग कहा जाता था, का पालन-पोषण एक जातिभेदी और सामाजिक विषमता से ग्रसित वातावरण में हुआ था। उनकी मां की परवरिश और पढ़ने की उनकी आदत के कारण कई लेखकों के विचारों ने उन्हें प्रभावित किया और उनके अंतःकरण में मानवता व न्याय के बीज का रोपण किया।

     ईसाई धर्म में विश्वास रखनेवाले किंग ने सत्याग्रह का रास्ता अपनाया और रंग के आधार पर किए जानेवाले जातीय पक्षपात का अंत करने की अमेरिका की सबसे बड़ी क्रांति का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़े। वे आजीवन अहिंसा के मार्ग पर चले और बिना हथियार उठाए तथा बिना गोली चलाए उन्होंने हजारों लोगों के विरुद्ध संघर्ष किया; और उनके इस साहसपूर्ण कार्य के लिए उन्हें साल 1964 के नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।

     दोनों ही रंग पक्षों द्वारा अपनी हत्या के कई बार प्रयत्न किए जाने के बाद भी किंग अपने मकसद पर बने रहें ताकि उनका सपना, कि उनके बच्चे एक ऐसे देश की आबोहवा में सांस लें जहां उनके साथ उनके रंगों के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए, साकार हो सके। पर अफसोस कि उनकी मृत्यु के बाद ही उनका यह सपना साकार हो पाया। पर यहां मायने यह रखता है कि जिस आंदोलन की उन्होंने शुरुआत की उसने अमेरिका के इतिहास का स्वरूप ही बदलकर रख दिया।

     आइए, उनके जन्मदिन के इस अवसर पर हम उन्हें याद करते हुए यह उम्मीद करें कि शांति और समानता की हमेशा जीत होगी।

     - दीप त्रिवेदी
 



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