Saturday, January 11, 2014

भाग्य, तुम बला क्या हो?


- ए भाई भाग्य, तुम क्या बला हो? क्यों कभी मेरा साथ नहीं देते हो?
- देखो जनाब, मैं कोई बला नहीं हूँ। …मैं तो कोई चीज हूँ ही नहीं। मुझे तो अस्तित्व में ही ये दुकान चलानेवाले लाए हैं। तुम लोगों को कर्म से भागने की आदत पड़ गई है और तुम्हारी इन्हीं आदतों ने इन लोगों की लॉटरी लगवा दी है। बस ज्योतिष, वास्तु और फंग-शुई तथा और भी न जाने क्या-क्या के नाम पर तुम्हें बहला के लूटा जा रहा है। लेकिन तुमलोग एक सीधी-सी बात क्यों नहीं समझते कि परिणाम कर्म के आते हैं। यदि कर्म पूरी कर्मठता से करोगे और उस कर्म की तुममें योग्यता भी होगी; तो सकारात्मक परिणाम आएंगे ही। …बाकी तो बिना कारण मुझे दोष दोगे तो जो थोड़ा बहुत है वह भी ये ज्योतिष व वास्तु वाले लूट के ले जाएंगे।
-वाह रे भाग्य! तुमने तो न होते हुए भी अपना पूरा गणित ही समझा दिया। …यानी हमारे कर्म ही हमारे भाग्य का निर्माण कर रहे हैं। अर्थात् हमारा भाग्य कर्म का मोहताज है, हमारे कर्म भाग्य के मोहताज नहीं। अब देखो, मैं कैसे तुम्हें सुखी और सफल होकर दिखाता हूँ।
- दीप त्रिवेदी


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