तुम अगर गलतियां करने से घबराओगे तो तुम्हारे हाथ केवल असफलता
ही लगेगी, इसलिए बिना डरे आगे बढ़ो- यही प्रवृत्ति एक इंसान को महान बनाती है। आपको
इस बात पर यकीन नहीं? तो आइए और जानिए उस इंसान के जीवन को जिसने ये बुद्धिमत्ता के
शब्द कहे थे, और फिर आपको इस बात पर यकीन हो जाएगा।
बेंजामिन फ्रैंकलिन का जन्म 17 जनवरी सन
1706 में बोस्टन के मैसेच्यूसेट्स नामक शहर में एक गरीब साबुन निर्माता के घर में हुआ
था। प्राथमिक शिक्षा से वंचित रहने के बावजूद, बेंजामिन जो भी कार्य करते, अक्सर उसमें
श्रेष्ठ होते। उन्होंने बारह वर्ष की छोटी-सी आयु में अपने भाई जेम्स की प्रिंटिंग
प्रेस में काम करना प्रारंभ किया और जल्द ही प्रिंटिंग का काम सीख भी लिया।
उनकी कही हुई बात कि ‘‘या तो कुछ ऐसा लिखो जो
पढ़ने लायक हो या कुछ ऐसा करो जिसके बारे में लिखा जा सके’’ को पढ़कर एक घटना याद आती
हैः उनके भाई उनके लिखे लेख कभी नहीं छापते अतः उन्होंने श्रीमती साइलेंस डुगुड के
उपनाम से क्रमशः सोलह लेख लिखे थे जिसमें उन्होंने अमेरिकी उपनिवेश से जुड़े कई पहलुओं
पर विस्तार से टिप्पणी की थी। आगे अपनी जिंदगी को अपने दम पर जीने के लिए उन्होंने
मात्र सत्रह वर्ष की आयु में अपना घर छोड़ दिया था।
‘‘ऊर्जा और दृढ़ता से हर चीज पर विजय प्राप्त
की जा सकती है’’ शायद यही वो मंत्र था जो उन्होंने तब सीखा जब न्यूयॉर्क की अनजान गलियों
में भटकते-भटकते फिलाडेल्फिया गए जहां उन्होंने खुद के दम पर एक प्रिंटिंग प्रेस शुरू
की। धीरे-धीरे पर दृढ़ता से उन्होंने बुद्धिमत्ता, समाज और राजनीति की सीढ़ियां चढ़ी और
इतने सफल बने कि उनके राज्य के लोगों ने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए और बाद में
अपने देश का संविधान बनाने के लिए उनका चयन किया। उन्होंने बिजली के प्राकृतिक स्वभाव,
जिसने दशकों से कई विद्वानों को दुविधा में डाल रखा था, का रहस्योद्घाटन कर विज्ञान
के क्षेत्र में भी एक महान योगदान दिया।
बुढ़ापा आने तक उन्होंने लेखक, प्रिंटर, राजनीतिक
सिद्धांतकार, राजनेता, पोस्टमास्टर, वैज्ञानिक, संगीतज्ञ, आविष्कारक, व्यंगकार, सामाजिक
कार्यकर्ता, कूटनीतिज्ञ और पर-राष्ट्र विशेषज्ञ जैसी न जाने कितनी उपाधियां प्राप्त
कर ली थी जो इस बात को साफ जाहिर करता है कि वे एक बहुमुखी प्रतिभा से संपन्न व्यक्ति
थे।
आधुनिक अमेरिका के इस संस्थापक पिता की सच्ची
प्रतिभा ही उनका वह गुण था जो उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करता था और सत्य की खोज ही उनका
एकमात्र उद्देश्य था, जिसे उन्होंने बड़ी बुद्धिमानी से भलीभांति पूरा किया।
आइए, हम उनके साहस, उनके क्रांतिकारी विचार और
कभी हार न माननेवाले रवैये को सलाम करें और उनके उन गुणों को ग्रहण करने का प्रयत्न
करें जिन्होंने उन्हें महान बनाया।
- दीप त्रिवेदी
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