Friday, January 31, 2014

लोमड़ियों का जमावड़ा



एकबार जंगल में पचासों लोमड़ियां एकत्रित हुई। सभा का मकसद साफ था। सब उन्हें लुच्ची कहकर पुकारते थे, वह उनसे बर्दाश्त नहीं होता था। अब सब यह तो मान ही रही थीं कि जानवरों में सबसे चालाक वे ही हैं। सब अपने को धोखेबाज व दगाबाज भी जान ही रही थी। परंतु चर्चा का प्रमुख विषय यह था कि यह लुच्चापन हममें आया कहां से? एक हम ही इतनी धोखेबाज कैसे हो गईं?
  
            अब विषय तो गंभीर था, परंतु इसका पता लगाना आसान नहीं था। अब जड़ मालूम पड़े तो लुच्चाई कम की जा सके। लेकिन कोई पक्का उत्तर सामने नहीं आ रहा था। तभी एक लोमड़ी की बच्ची हाथ में ‘इन्सान को नसीहत’ नामक किताब लेकर वहां से गुजर रही थी। उसकी माता भी इस सभा में मौजूद थी। उसने उससे किताब मांगी व पढ़ना शुरू की। और देखते-ही-देखते उस लोमड़ी ने किताब पूरी पढ़ भी ली।
  
            ...बस वह कूदते हुए सभा के मध्य जा पहुंची और सबको शांत कराते हुए बोली- बहनों! हमारी लुच्चाई का रहस्य पकड़ में आ गया है। दरअसल यह लुच्चाई हममें इन्सानों से आई है। हम वे लोमड़ियां हैं जिन्होंने अपने पिछले इन्सान-जन्म में खूब लुच्चाइयां की थीं। ...यानी हम इन्सानों का विकृत स्वरूप हैं। अब चालाकी करने वाले इन्सान की इन्सान जाने, परंतु हमारे पूरता यह तय है कि यदि हमने अपनी चालाकी ऐसे ही बढ़ाई तो अगले जन्म में हम फिर इन्सान हो जाएंगी। सो, बेहतर है हम अपने से बन सके उतनी चालाकी कम करें, ताकि हमें दूसरे जानवरों का जन्म लेने का मौका मिले। ...बस हाथोंहाथ पूरी सभा ने ध्वनिमत से यह प्रस्ताव पारित कर दिया।
  
   - दीप त्रिवेदी
  




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