इंडियन स्पेस रिसर्च ओर्गनाइजेशन (ISRO) ने GSLV-D5 नामक राकेट को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजकर हमें नए साल का जश्न मनाने की एक नई वजह प्रदान कर दी है। भूकक्षीय उपग्रह प्रक्षेपणयान GSLV-D5 ने (GSAT-14) नामक एक संचार उपग्रह, जो कि लगभग 2000 किलो वजन का है, को अत्यंत कुशलतापूर्वक धरती से 36000 किमी० दूर भू-कक्षा में स्थापित कर दिया। यह भारत की एक महानतम उपलब्धि है क्योंकि इस यान में जिस मशीन का प्रयोग किया गया है, वह भारत में ही कई वर्षों के सतत प्रयास से विकसित की गई है।
पिछले दशक में भारत द्वारा रूस से मंगाए गए आठ में से छ: क्रायोजेनिक इंजिनों पर प्रयोग किए जाने के बाद वैज्ञानिकों ने प्रयोग प्रारंभ किए। दो प्रयोगों के असफल होने के बाद रविवार के इस प्रक्षेपण ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बीच भारत की प्रतिस्पर्धात्मक और सहयोगात्मक क्षमता को आखिरकार साबित कर ही दिया। इस उपलब्धि के बाद भारत अमेरिका, रूस, चीन, जापान और फ्रांस के बाद छठा देश बन गया है जो स्वदेशी स्तर पर क्रायोजेनिक इंजिन बनाने में सक्षम है। इस क्रायोजेनिक इंजिन में इंधन के रूप में तरल हाइड्रोजन तथा आक्सीडाइजर के रूप में तरल ऑक्सीजन का प्रयोग किया गया है और यह एक ऐसी तकनीक है जो किसी भी राकेट वैज्ञानिक को हवा में उड़ने की बुलंदी प्रदान कर सकता है।
गौरवान्वित मन और उल्लसित हृदय के साथ मैं सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, आँध्रप्रदेश की पूरी टीम को हार्दिक बधाई देना चाहता हूँ। क्योंकि मेरा विश्वास है कि उनकी यह सफलता ज्यादा-से-ज्यादा प्रतिभाशाली भारतीयों को विज्ञान के क्षेत्र में रुचि दिखाने के लिए प्रोत्साहित करेगी। विज्ञान और तकनीक में उन्नति के जरिए ही भारत की प्रगति होगी और वह शक्तिशाली देशों के बीच अपनी जगह बनाएगा। भारत में प्रतिभावान वैज्ञानिकों का कोई अभाव नहीं हैं और यह बात आनेवाले वर्षों में और ज्यादा पुख्ता हो जाएगी। ISRO की पूरी टीम को पहले सुचारू क्रायोजेनिक इंजिन के निर्माण की बधाई क्योंकि इनके ही प्रयासों के कारण भारतीयों द्वारा स्वदेशी संचालित यान को अंतरिक्ष में भेजने का भारत का सपना साकार हुआ।
- दीप त्रिवेदी
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