Sunday, January 26, 2014

गणतंत्र दिवस मुबारक हो परंतु सोचो यह कि क्या वाकई गणतंत्र की स्थापना हुई है?


क्या कोई ऐसी दलील कभी अदालतों कम्पनी लॉ र्बोड, इन्कमटैक्स के आफिसों या अन्य कहीं काम आएगी कि जिन बातों के लिए रॉबर्ट वाड्रा या नितिन गडकरी पर कार्रवाई नहीं होती कम-से-कम उनसे बेहतर पेपर्स होने पर हम पर भी कार्रवाई न हो। यह तो होना ही चाहिए। क्योंकि छोटी-मोटी बातों पर भी आम आदमी कितना कुछ सह रहा है और ये पोलीटीशियन हैं कि इतने बड़े-बड़े घोटाले कर भी मस्त घूम रहे हैं। यह कम-से-कम आजाद भारत में जहां संविधान सबको बराबरी का हक देता हो वहां यह सब सहना बड़ा दुःखदाई हो रहा है। क्योंकि गणतंत्र की स्थापना हुई कहां है।

 ...परंतु गणतंत्र लागू तो करना ही है। पर कैसे...? अब नेता और बाबू तो आजादी देने वाले नहीं। हमें चौबीसों घंटे इन्हीं से डर-डरकर रहना पड़ता है। ये नेता और बाबू आज आम भारतीयों के लिए अंग्रेजों से भी ज्यादा खतरनाक हो गए हैं।

 इनसे आजादी का एक ही उपाय है गांधीजी की तरह असहयोग-आंदोलन छेड़ दिया जाए।

 यानी...
     * जब तक नितिन गड़करी पर कारवाई नहीं हमें चालान भरना नहीं।
     * हमारी फाइलें गुम तो फिर आगे किसी बात का जवाब देना नहीं।
     * जब तक नितिन गडकरी व रॉबर्ट वाड्रा की बिना ब्याज की अन-सिक्योर्ड लोन ठीक, तब तक हमें भी हमारी अन-सिक्योर्ड   लोन का कोई जवाब देना नहीं। काहे का टैक्स काहे का कन्फरमेशन।

 जनता की ताकत बहुत बड़ी होती है! या तो ये नेता लोग और बाबू सीधे हो जाएंगे, या फिर समान क्राइटेरिया पर हमें भी छूट मिल जाएगी।

 गणतंत्र स्थापित होने के बाद पहली बार संविधान ठीक से लागू होगा सबको समान नागरीकत्व का डॉ. आंबेडकर का सपना पूरा होगा।
  
 सो...
 जय असहयोग!

  - दीप त्रिवेदी



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