मैंने मनुष्यजाति को सही
राह दिखाने हेतु क्या कुछ नहीं किया? यहां तक कि मैंने हंसते-हंसते अपने जीवन की कुर्बानी
भी दी। ...पर हुआ क्या?
क्या
मेरी शिक्षा किसी ने अपनाई? मेरी बातें किसी ने सुनी? क्या संसार में आपसी भाईचारा
और प्रेम बढ़ा? नहीं...।
...तो
फिर मेरा दर्द तो पहचानो। मुझे याद कर खुशी से झूमो जरूर, उत्सव भी जरूर मनाओ, पर साथ
ही मेरी शिक्षाएं जीवन में उतारकर आपसी प्रेम और भाईचारा तो बढ़ाओ। यह कहां का इन्साफ
है कि मेरे नाम पर तुम खुशी मनाओ, और मेरे दर्द की खबर ही न लो? सो, आज से मेरी याद
में प्रेम बांटो...बांटो और बांटते चले जाओ...।
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दीप त्रिवेदी
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