Friday, January 3, 2014

खुदा तेरा जवाब नहीं


ठंड का मौसम था। तापमान 0 डिग्री के करीब था। एक बेसहारा बूढ़ा मस्जिद के सामने वाले फूटपाथ पर लेटा ठंड से बुरी तरह कांप रहा था। उसके ठीक सामने मस्जिद में चादर चढ़ाने वालों की कतार लगी हुई थी। वह हर चादर में अपना जीवन देख रहा था। परंतु कोई उसे चादर क्यों देगा? हरेक को चादर चढ़ाकर अपने लिए उज्वल भविष्य जो मांगना था।
तभी एक मजदूर उसी फूटपाथ से गुजर रहा था। उसकी नजर इस बूढ़े पर पड़ी। उसकी हालत देख वह समझ गया कि यदि आज की रात इसने ऐसे ही काटी तो मर भी सकता है। उसने हाथ पकड़कर बूढ़े को उठाया और अपने घर चलने को कहा। बूढ़ा भी हैरान था। क्योंकि वह अकेला ही था जो सड़क से गुजरने के बाद भी मस्जिद नहीं जा रहा था। बूढ़े ने आश्चर्य से पूछा भी कि भाई मेरे, तुम्हें अल्लाह से कुछ नहीं मांगना है?
वह बोला- मांगना तो है, पर वह देता है कि नहीं इसका यकीन नहीं। जबकि मेहनत करने पर मजदूरी मिल ही जाती है। खैर, वह सब छोड़ो और घर चलो। अब बूढ़ा तो कोई आसरा चाहता ही था। उधर वह मजदूर बड़ा ही कोमल हृदय था। उसने बूढ़े को ना सिर्फ भोजन कराया, बल्कि रातभर दोनों सिकुड़कर एक चद्दर में सो भी गए। सुबह तक बूढ़े की हालत काफी सम्भल चुकी थी। बस उसने आसमान की तरफ ऐलान करते हुए कहा- वाह रे खुदा । तू पता तो नक्काशीदार कारिगरी से बनी आलीशान मस्जिदों का देता है और रहता रहमदिल गरीबों के दिल में है!
- दीप त्रिवेदी

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